Saturday, April 23, 2011

शब्द-नृत्य

बाँधने दो आज बंधन
विकल मन को
मुंड पे लेपो धधकते
आज शीतल शुभ्र चन्दन 
सोख लेने दो सकल
हर रश्मि रंजित
श्याम तन को
वाष्प करने दो मुझे
हर गंध , छाया , नाद , घर्षण
ढूंढने दो आज वो निर्वात
जिसमे प्राण वायु मौन धर ले
तब मसि पीकर , मदोन्मत्त
लेखनी भी नृत्य कर ले
शब्द वन में ,
पर्ण , शाखे , जड़ , जटाएं
अंग सारे प्रेयसी के रूप भर ले
और झूमे तक धिना धिन
तुनक तुन तुन
प्रेम धुन में

Monday, April 18, 2011

निशि-अनुबंध

कल का स्नेहनुबंध याद है , मंद मंद आनंद याद है
निशिगंधा के रूप लिए बातो की मदिर सुगंध याद है
निर्बाधित आलाप भ्रमर से , अनुगुंजित ज्यू नाम शिखर से
अवगुंठित , अनुराग लिए , पल जो छीने थे किसी प्रहर से
तंद्र तंद्र नयनो में बैठा अर्ध-सुप्त उन्माद याद  है
हे प्रिये तुम्हे कल रात याद है ?

निशि - वेला में विघ्न हुआ जब रश्मि विहीन तुणीर किया
रवि ने जब सप्त-तुरंग चढ़े , सिन्दूरी अम्बर-चीर किया
तब पथ प्रशस्त कर निकल गए , संध्या आश्वत हृदय लेकर
चुप चाप सजीली नार चले जब पग बोले छम रुनझुन कर
कर छोड़े जब दिनकर आये
क्या उस कर का निर्वाह याद है ?
हे प्रिये तुम्हे कल रात याद है ?

Friday, April 15, 2011

टीस

हमउम्र मेरे दानिशमंदो को यूँ बौराते देखा है
मैंने उनको नंगे सडको पे दौड़ लगाते देखा है
दुनिया की बातो पे सोने की धार लगाते देखा है
प्यासी आंखो को सपनो के तेज़ाब पिलाते देखा है |
कमरे में धुप्प अँधेरे रमते,  ध्यान लगाते देखा है
कोचिंग की किश्तो में घर के बर्तन बिकवाते देखा है
अपने हाथो से काग़ज़ के अम्बार जलाते देखा है
कर्जो के कश लेकर तुक में संसार बनाते देखा है |
रिश्वत देकर बाबु से अपनी जात लिखाते देखा है
केरोसिन में सनकर खुद ही तीली सुलगाते देखा है
तमगे को गलवा कर नुक्कड़ पे पान बनाते देखा है
पैसो की खातिर रैली में यलगार उठाते देखा है |
मैदानो पे जिनको लत पथ कसरत फरमाते देखा है
टूटी हाकी से कमरे की दीवार सजाते देखा है
उस भाई को जिसको बहना की लाज बचाते देखा है
बैरैक में उसको भी मैंने आंसू टपकाते देखा है |
कुछ सुर्ख स्याही में उनको बारूद बुझाते देखा है
ग़म फूंक जला अपने प्याले में राख मिलाते देखा है
भूखी आंतो को गांजे के मलहम लगवाते देखा है
और नीली पड़ी हथेली पे रेखाएं बनाते देखा है |
अच्छे खासो को दीवानो सा हाल बनाते देखा है 
चुपचाप अकेले में बैठे डर से थर्राते देखा है
दुनिया की बातो पे सोने की धार लगाते देखा है
प्यासी आंखो को सपनो के तेज़ाब पिलाते देखा है |

Sunday, April 10, 2011

ताबीर

कभी जब डूबती जाए ख़ुशी ,
और सब ओर छाये बेबसी ,
किसी का साथ भूल जाता है ,
जिसे अपना ख्याल आता है |

ऐवेई हम भी खोते रहते है ,
जागी आंखो से सोते रहते हैं ,
मगर सोते से जगा देता है ,
जब ये तूफ़ान उड़ा देता है |

स्याह बादल , बेबसी  तन्हाई
काली यादो की जमी परछाई
ऐसी दीवार गिरा देता है
हर एक गुमान बहा देता है |

तब ख़ुशी से महक जाते हैं हम
बिना पिए बहक जाते है हम
हंसी आती है तब उदासी पर
बोरियत से भरी उबासी पर |

जब बिखर जाती है सब दीवारें
वो दरवाजा भी पसर जाता है
कोई दस्तक तो देता रहता है
जो बहुत बाद नज़र आता है |

हर एक ख़्वाब की ताबीर लिखी होती है
बेकरारी जिसे हमसे छुपाये होती है
मगर जब ज़िन्दगी सजाता है
तब उस ताबीर पे प्यार आता है |