Tuesday, November 2, 2010

राम-खटारी


एक दिन वो था , जब तुझे घर ले के आया था ,
माँ ने माथे पे तेरे तिलक लगाया था ,
मुझे रास्तो ने और तुझे गड्ढो ने सताया था ,
दिल पे मेरे , engine पे तेरे शनि का साया था,
किसी ऑटो-dealer ने पत्रिका देख मिलाया था ,
वो साथ जो बड़ी महंगी कीमत पे आया था |

न मेरे रास्ते बदले , न उनके गड्ढे ,
मगर हम साथ थे जब तक हर दिन लगता था बर्थडे ,
मजबूर यारो की सवारी थी तू ,
ये बात अलग है की खटारी थी तू ,
बजता था सब कुछ होर्न छोड़कर ,
इंडिकेटर दगा दे जाता था हर मोड़ पर |

एक साल बिना brake चलाया तुझको ,
तुने मुझे और मैंने बचाया तुझको ,
मै तंगहाल था तुझे सजा न सका ,
कुछ पुर्जे भी टूटे तो फिर लगा न सका
अब जा रहा हूँ कर के तुझको हवाले ,
एक शख्स के जो तुझे खूब सम्हाले ,
ये विरह नहीं नयी शुरुआत है ,
तुमको नया जीवन मेरी सौगात है ||