Wednesday, January 18, 2012

बिरहन


नैनं नींद न आये है 
मोतियन धार बहाए 
अलख धरे पिय नाम की 
बिरहन धुनी रमाये |

नस नस ये छिन छिन कहे 
पिया गए नहीं आये 
बैद सयाना क्या करे 
धरे नब्ज झुंझलाए |

अंग अंग कांटे चुभे  
पल भर चैन न पाए 
करवट ले ले सेज पे 
गोरी रैन बिताये |

सास ननद ताने कसे 
बहरी सुन ना पाए 
बौरी हो बन बन फिरे 
तलवे खून नहाए |

जाये बसे परदेस पी  
दरसन को तरसाए 
प्रेम की मारी न मरे 
मरे पाप हो जाए |

आखर ढाई जो पढ़े 
मुए अमर हो जाए 
पोथे ले जो जो फिरे 
जिए मुए कहलाये |

Sunday, January 1, 2012

अंतर्पिशाच


कोई मुझे रोकता है 
बेबसी की लय पे फिर बार बार करता हूँ , वही गलत काम एक, 
एक धुन में "धा धिन धिन तिर किट धिन "
फंसा हुआ रहता है मन बहुत विकट , 
मकड़ जालो में खयालो के रात या के दिन 
एक धुन में "धा धिन धिन तिर किट धिन "
कातर सा करता है मुझे ...ग्लानी भाव मुझमे भरता है, 
उठा पटक करता है अन्दर बाहर मेरे, एक अजीब प्रश्न बना रहता है ...
क्यूँ ऐसा करता तू क्यूँ ऐसा करता है ?

चेहरे जो उभरे है तकिये पे ताकते हैं , 
जाने क्या आँखों में वो पिशाच झांकते हैं 
खोखला है अन्दर सब, गहन अंधेरो में घुसा 
अगर मिला तो भी क्या रोता बैठा कोई ...
मै नहीं हूँ वो विकृत मानव की एक छाया 
अपराधी प्रकृति का बीज मात्र ...निज में एक परकाया 
बांधने की चेष्ठाएं करता हूँ
भरसक रखता हूँ बना नियमो के कवच कितने
शब्द जाप और काले डोरों के तंत्र यन्त्र , 
और उलझ जाता हूँ,  निष्फल होकर तब जब  
एक पल के लिए उसे रोक नहीं पाता हूँ 
फिर वही दोहराता हूँ...