Thursday, October 11, 2012

जब चाँद हथेली पर होता

कुछ कम कुछ और ज्यादा है , ये तो दस्तूर सदा से है
तुम से कुछ गिला नहीं मुझको , शिकवा बस मेरी वफ़ा से है ..
जो उलझी है हर बात अगर , तो सुलझाने से तौबा क्यूँ
एक छोर पकड़ सुलझाते तुम , एक छोर पे मै हाज़िर होता
एक बूँद शफक से चोरी कर , मै उसमे सागर भर देता ..
इस रात की कालिख कम होती , जब चाँद हथेली पर होता
वो राह नहीं जिसपे उसके कदमो की चाप नहीं आती,
वो साथ अगर हो जाता तो, दूरी का किसको गम होता ..
एक अश्क मेरे सिरहाने पर , कब से तनहा है न जाने
सीला तकिया भी कहता है, पी लेता जो कुछ कम पीता
मै वक़्त की सुइयां पीछे कर , चाहूँ तो ठीक न कर पाऊं
ऐसे गुनाह है कुछ मेरे, गर ना होते ...हमदम होता ..
उस मील के पत्थर को अपना भगवान बना कर पूजूंगा
जो तुम भी थाल सजाते तो, अपना सच्चा संगम होता ..
बस एक ही ख्वाब मेरा था यह , तुम होते , और एक घर होता
इस रात की कालिख कम होती , जब चाँद हथेली पर होता

Sunday, September 23, 2012

अधुरा प्यार

कितने दूर चलूँगा ऐसे
कोई सीमाएं तो होगी
जूतों को कितना देखूंगा
फीते कितनी बार कसुंगा
बार बार ये खुल जाते हैं
और मुझे उलझा जातें हैं
कितना दूर चलूँ मै बोलो
दस्तक पे दरवाजे खोलो
जोगी बन के द्वार तुम्हारे
कितनी सदियों खड़ा रहूँगा
दूरी तो इतनी नापी है
घिसे पाँव और रिश्ते छले
कितनी और तपस्या होगी
किसको पूजें तुमको पा लें
शायद रास्ता अंतहीन है ,
या शायद ये ही मंजिल है
जतन करू कितने मै पाने
रस्ते हैं कितने अनजाने
जाने किस धुन में खोयी हो
बिसरी यादो में रोई हो
कैसे दूर करू ना जानू
और किसी की बातें कितनी
तकिये में भर के सोयी हो
लेकिन मेरा जोग यही है
जितना है सुख भोग यही है
एक दिन ऐसा भी आएगा
कोई मुट्ठी भर जायेगा
चावल के सफ़ेद दानो से
कितना भी भीचुं फिसलेंगे
भर खुशियाँ तुम पे बरसेंगे
तुम्हे विदाई दे जाऊँगा 
तेरे द्वार फिर ना आऊंगा
दुखद स्वप्न ये ही मेरा
इससे कितनी दूर चलूँगा
कितने दूर चलूँगा ऐसे

Tuesday, June 5, 2012

प्रेम पतन

एक सफ़ेद कबूतर था
जो दूजों से इत्तर था
इक पर उसका काला था
और वो हिम्मत वाला था
प्यार हुआ एक कोयल से
बैठा एकतरफा दिल दे
गुटर गुटर गूं करता था
कुहू कुहू पे मरता था
इक दिन उसने इजहार किया
कोयल तुमसे ही प्यार किया
तब मीठे शब्द कही कोयल
मै काली और तुम धवल धवल ..
अब ऐसी जग की रीत नहीं
और मुझको तुमसे प्रीत नहीं
तब दिल-ऐ-कबूतर टूट गया
और वीराने को कूच किया ...
अपने ही में रहता था अब
मुह से कुछ न कहता था अब
पर धोने की अब की न कसर
और रंग हुआ उसका धूसर
इक दिन इक शैतानी साया
चिमनी बन कर आगे आया
उड़ती कालिख देखी उसने
कोयल का कहना याद आया
तब बढ़ा चला वो उसी ओर
घुटता दम और धुंए का जोर
चिमनी ने उसके होश लिए
और रंग हुआ उसका काजल
एक बार देख अपनी हालत
बोला हंस के आओ कोयल
अब मै तुम जैसे काला हूँ
लेकिन अब मरने वाला हूँ
कालिख में जान समाएगी
ये आग मुझे खा जायेगी
और गिरता रहा ठहाके ले
टकराता सा दीवारों से आँखे थी लाल अंगारों सी
निचे देहका सा नरक उसे
खा गया वहीँ बाहों में ले
खा गया वहीँ बाहों में ले ...
इसका नसीब कुछ इत्तर था
कोयल से मिलने के पहले
वो एक सफ़ेद कबूतर था
वो एक सफ़ेद कबूतर था

डर


धुप्प अँधेरे से डरता है
सहमा सहमा क्यूँ रहता है ?
ये तो कोई बात नहीं है
ऐसे भी हालात नहीं है ...
के तू आस छोड़ दे अपनी
डूबी सांस तोड़ दे अपनी
अनजाने से डर मत पागल
वजह खोजते बढ़ चल पागल
ये बस एक सवाल है प्यारे
और जवाब है दूर किनारे
अँधेरा बस खालीपन है
जान जायेगा एक दिन तू भी ..
चारो ओर उजाले पाने
बढ़ता जाएगा फिर तू भी ..
कोई तेरे साथ नहीं है
ऐसे भी हालात नहीं है ...
डरने की कुछ बात नहीं है ....
डरने की कुछ बात नहीं है ...

Thursday, May 24, 2012

बाबा

कोई न आक्खे मैनू बाबा
मै बाब्बे दा चेला ...
पर्वत विच्चो धुनी धरे 
नाल ओदे मगन केल्ला ..
लोड नै एस दुनिया दी मैनू 
बाबा मेरा चलावे 
दुःख दरद सभी हर लेवे जे 
नाम जबान चे आवे ..
भेस बनावे घूमूं ओदा 
अक्खड़ मस्त मलंग 
बाबा मेरा मस्त रवे  
पीके प्याला भंग ...
देखे सब आंखे मूंदे साडा 
मालिक मुर्शिद प्यार ..
अस्सी एबी सानू हर बाब्बे 
तेरी भस्म बनू सिंगार ...
कोई कहे दम दम कोई बम बम 
एक अजान ओंकार ...
अनहद नाद लगावे सारे 
इक ही सब का सार ...
लड़दे मरदे लोकी सारे , 
ढोंग बढ़ावे भेद ..
कर दे बाबे कुछ ऐसा 
भर जाये दिल दा छेद...
मै मुरख मैनू इलम नहीं 
भूल चूक सब माफ़ 
वसदा तू सबदे अन्दर 
पर दीदे चढ़े लिहाफ ...



सांच


सच्चा साहिब एक है,
मै जाना मन खोये ...
मौन रहूँ  नैनं सुनूँ , 
लफ्ज़ लबारी बोये ... 
जिन दीना दिल आंकिये 
बहरा बने न मान ..
माया ठगिनी जायेगी , 
झोली रीती जान ... 
प्रीत करे बिसराइये 
कडवी खट्टी बैन , 
जो मधवा बिस्वास का, 
चखे सो जाने चैन ...

Saturday, May 19, 2012

धूसर

मुझे अँधेरे पुकारते हैं , 
झींगुर की आवाजें बनकर 
और रौशनी मद्धम मद्धम 
कहती है रुक जाओ पल भर ...
आखिर तो मिलना ही है , 
कालिख और आग नहीं दुश्वार 
दोजख कुछ दूर नही मुझसे , 
कहते हैं अँधेरे हर बार 
मगर रौशनी मुस्काती है 
बढ़ चल दूर बहुत है छोर
वो नीला दरिया पानी का  
बर्फीले सफ़ेद की ओर  .. 
इसलिए बढ़ता जाता हूँ 
धूसर एक प्रेत जैसे , 
अभी अंधेरों धीर धरो ...
ले जाना जब सांस रुके ..

Friday, April 27, 2012

वादा


अपने मन में ठानी है तो अपने मन की गाऊंगा मै 
तुम्हे सुनहरे कल के झूठे सपने नहीं दिखाऊंगा मै

सूनी सूनी होती है वो सन्नाटो से सराबोर सी 
पथरीली है राहें सच्ची , बढे चलूँगा पैर जमाए 
धुन लागी है जबसे तेरी, सुनूँ नहीं जो लोग सुनाये 
सतही चिकनी बातो की तब क्या मजाल जो आड़े आये 
पग पग बिखरे कांटो पे भी फूल गुलाब सजाऊंगा मै ... 

अपने मन में ठानी है तो अपने मन की गाऊंगा मै 
तुम्हे सुनहरे कल के झूठे सपने नहीं दिखाऊंगा मै

फिर कहते हो गुस्सा करते हो तुम दिन दिन मुझपे यूँ ही 
प्यार किया है जब तुमसे तो, थोड़ी डांट-डपट भी होगी 
थोडा कहना जब बेहतर हो , मै आँखों से बात करूँगा 
कडवे शब्द कहूँगा तुमसे , सुई लगाते नहीं डरूंगा
जब गुस्सा मुझसे हो जाओ ये बाहें फैलाऊंगा मै ...

अपने मन में ठानी है तो अपने मन की गाऊंगा मै 
तुम्हे सुनहरे कल के झूठे सपने नहीं दिखाऊंगा मै

एक सयाने ने लिखा है , आग का दरिया डूब के जाना 
मै तो उतरा हूँ इसमें , तुम भी आओ ये शर्त नहीं है 
साँसों का जब तक बंधन है , लेकिन मेरी आस लगी है 
जो भी रिश्ता हो जैसे हो, वादा यही निभाऊंगा मै 
तुम्हे सुनहरे कल के झूठे सपने नहीं दिखाऊंगा मै ....

Tuesday, April 3, 2012

नारंगी

अरी रंग रंग दे नारंगी मोरी चुनरिया 
बिसरे दुनिया , झूमूँ बेसुध 
पा के खबरिया , पी की डगरिया 

बरसे सावन हरिहर हो सब 
पत्ती पत्ती क्यारी क्यारी... 
तरसे नेहा ... बरसे मेहा 
बरसे रिम झिम बाजे टिप टिप 
आये पिय रे भेजो खबरिया 

कूके कोयल , रुत बसंत में 
अम्बुआ फूले पक पक डारी
सरसों पीली नापे धरती
अगन लगाए सूरज भारी 
बैन सुनो मोरी अबरी सांवरिया 


दोनों रंग नारंगी ओढ़े 
राम रहीमी बन मतवारी 
मोहे भी रंग ऐसे दीजो 
झूमूँ बनठन ऋतुएँ सारी
पा के खबरिया , पी की डगरिया 

Tuesday, March 6, 2012

स्मृति लेख : ४५ मिनट



२ अगस्त २०११ , ००:४४ 

"जुम्बिश , हरकत , आवाज़ , नज़र सब छीन गयी , कोशिश मेरी 
पौना घंटा यूँ गुज़र गया मन की मन में, बस बात रही |

एक यादगार तोहफे के लिए 
तस्वीर बनानी थी तेरी 
पर कांप रहे थे हाथ मेरे 
वो दे न सका अच्छे के लिए |

कुछ लफ्ज़ गूंथने चाहे थे तुक में वो बात नहीं बैठी 
और शब्द हमारे बर्फ हुए कोशिश तो हुई , फूटे ही नहीं | 

वो चार निवाले हाथो से 
दो लफ्ज़ो से भारी निकले 
इतनी खुशियाँ न सह पाए 
नम गाल लिए रुखसत ले ली |

अब दाग लिए फिरते हैं सालन जो कमीज़ पे सूख गया 
अब उसकी एक कहानी है कुछ दाग सही अच्छे के लिए | "

Wednesday, January 18, 2012

बिरहन


नैनं नींद न आये है 
मोतियन धार बहाए 
अलख धरे पिय नाम की 
बिरहन धुनी रमाये |

नस नस ये छिन छिन कहे 
पिया गए नहीं आये 
बैद सयाना क्या करे 
धरे नब्ज झुंझलाए |

अंग अंग कांटे चुभे  
पल भर चैन न पाए 
करवट ले ले सेज पे 
गोरी रैन बिताये |

सास ननद ताने कसे 
बहरी सुन ना पाए 
बौरी हो बन बन फिरे 
तलवे खून नहाए |

जाये बसे परदेस पी  
दरसन को तरसाए 
प्रेम की मारी न मरे 
मरे पाप हो जाए |

आखर ढाई जो पढ़े 
मुए अमर हो जाए 
पोथे ले जो जो फिरे 
जिए मुए कहलाये |

Sunday, January 1, 2012

अंतर्पिशाच


कोई मुझे रोकता है 
बेबसी की लय पे फिर बार बार करता हूँ , वही गलत काम एक, 
एक धुन में "धा धिन धिन तिर किट धिन "
फंसा हुआ रहता है मन बहुत विकट , 
मकड़ जालो में खयालो के रात या के दिन 
एक धुन में "धा धिन धिन तिर किट धिन "
कातर सा करता है मुझे ...ग्लानी भाव मुझमे भरता है, 
उठा पटक करता है अन्दर बाहर मेरे, एक अजीब प्रश्न बना रहता है ...
क्यूँ ऐसा करता तू क्यूँ ऐसा करता है ?

चेहरे जो उभरे है तकिये पे ताकते हैं , 
जाने क्या आँखों में वो पिशाच झांकते हैं 
खोखला है अन्दर सब, गहन अंधेरो में घुसा 
अगर मिला तो भी क्या रोता बैठा कोई ...
मै नहीं हूँ वो विकृत मानव की एक छाया 
अपराधी प्रकृति का बीज मात्र ...निज में एक परकाया 
बांधने की चेष्ठाएं करता हूँ
भरसक रखता हूँ बना नियमो के कवच कितने
शब्द जाप और काले डोरों के तंत्र यन्त्र , 
और उलझ जाता हूँ,  निष्फल होकर तब जब  
एक पल के लिए उसे रोक नहीं पाता हूँ 
फिर वही दोहराता हूँ...