Sunday, December 19, 2010

आसरे

कतरा कतरा ये ज़िन्दगी जी है ,
प्याली प्याली उधार की पी है
सियाह पैराहन में बैठी है ,
एक बेवा सी चांदनी भी है

जाल में आये तो कैसे आये ,
यूँ मछेरो की कोशिशे भी है
लौट आये कोई सुबह शायद ,
तलाश उसकी रौशनी की है

तुम को बोले कोई सदी गुजरी ,
बात सोने की पोटली सी है
आज खोलो ज़रा गिरह अपनी ,
बात पिछले उधार ही की है

Friday, December 17, 2010

Chalte Bol

जो जमाने के अंधेरो को मिटाने निकले ,

उनको हाथों में आबलो के खजाने निकले |


कोई पत्थर तो उठाओ , तमाशबीनो तुम ,

बातो बातों से मेरे महल ढहाने निकले |


दिन तो वो भी गया के , चल दिए उठ कर चुप से ,

और किसी रोज़ ना जाने के बहाने निकले |


आह आई तो भी तेरी अदाएं लेती हुई ,

चीख उट्ठी तो लगा तुमको तराने निकले |


वो बला थी गुजर गयी , गुजर गए हम भी ,

बड़े कमज़र्फ हुए थे ये फ़साने निकले |