Wednesday, October 26, 2011

किसान की पहली बेटी


एक किसान के नमक से नहाकर 
खिलती है फसल , लहलहाती हरे रंग में ,
बचपन से यौवन तक गीत गाती है , चौमासे के 
खिलती है , खिलखिलाती है, ठंडी पुरवाई में 
बूढ़े किसान की मानिनी बेटी जैसे, 
आश्रय पाती है उसका , उसकी इज्ज़त हो कर ...
कालांतर में सोने से लद कर , ऋतुवती
उसके कंधो से उतर यौवन पे शर्माती है 
श्याम वर्ण असमय मेघों की चिंता 
उस किसान के माथे का बल बन जाती है ... 
तब वो नत होता है .. ईश्वर के आगे गिनता है घड़ियाँ 
उस दिन तक जब चढती है उसकी पहली बेटी डोली ... 
स्वर्ण-वर्ण , घर की खुशियाँ बनकर ...
तब होते हैं तीज , त्यौहार उस किसान के घर आगंतुक 
दीप मालाएं सजती है उसकी कुटिया में , 
मिठास घुलती है , पकवानों की 
आती है तब गुलाबी चूड़ियां , लक्ष्मी की कलाइयों में 
तब आते है लाल जोड़े , जुड़ता है दहेज़, बहनों की खातिर 
जब इस तरह किसान की पहली बेटी , बाबुल का फ़र्ज़ निभाती है ...

Tuesday, October 4, 2011

माँ


जब आंते भूख से कुलबुलाती है 
चिपक जाती है भीच लेने तब तेरा आँचल
फैल कर बाहें पेट के इर्द गिर्द 
बस हवा रह जाती है , आवाजें करती अन्दर बाहर 
माँ तब तू याद आती है 

जब थाली परसता है बैरा , कपडे से पोंछ कर 
लेकिन फिर भी एक तेल की तह रह जाती है 
बेस्वाद हो जाती है तब , एक एक निवाले की भूख 
तीखा खा कर तब , आँखे तेरी ममता याद कर 
नम हो जाती है , माँ तब तू याद आती है 

याद आती है , निश्छल तेरी सेवा दुलार , प्यार 
और गलतियाँ मेरी हज़ार , बार बार लगातार
जब तेरा प्यार खोजते हुए , मुझसे कोई लड़की टकराती है 
और मनचाहे ख़्वाब देखते , लेकिन तब तू बिसर जाती है 
एक दिन फिर जब वो भी अकेला छोड़ जाती है 
माँ तब तू याद आती है 

जब खाली होता है मन , और चार दीवारी 
और होती है लाचारी , दूरी , बीमारी 
तब शैशव की वो ढाल , और वो जुडी गर्भनाल पाने 
आत्मा मचल जाती है ,
फैला कर बाहें पेट के इर्द गिर्द , सिकोड़ कर लम्बी टांगें 
तन से वो स्थिति अकस्मात् दोहराती है 
माँ जब तू याद आती है ....