Thursday, May 24, 2012

बाबा

कोई न आक्खे मैनू बाबा
मै बाब्बे दा चेला ...
पर्वत विच्चो धुनी धरे 
नाल ओदे मगन केल्ला ..
लोड नै एस दुनिया दी मैनू 
बाबा मेरा चलावे 
दुःख दरद सभी हर लेवे जे 
नाम जबान चे आवे ..
भेस बनावे घूमूं ओदा 
अक्खड़ मस्त मलंग 
बाबा मेरा मस्त रवे  
पीके प्याला भंग ...
देखे सब आंखे मूंदे साडा 
मालिक मुर्शिद प्यार ..
अस्सी एबी सानू हर बाब्बे 
तेरी भस्म बनू सिंगार ...
कोई कहे दम दम कोई बम बम 
एक अजान ओंकार ...
अनहद नाद लगावे सारे 
इक ही सब का सार ...
लड़दे मरदे लोकी सारे , 
ढोंग बढ़ावे भेद ..
कर दे बाबे कुछ ऐसा 
भर जाये दिल दा छेद...
मै मुरख मैनू इलम नहीं 
भूल चूक सब माफ़ 
वसदा तू सबदे अन्दर 
पर दीदे चढ़े लिहाफ ...



सांच


सच्चा साहिब एक है,
मै जाना मन खोये ...
मौन रहूँ  नैनं सुनूँ , 
लफ्ज़ लबारी बोये ... 
जिन दीना दिल आंकिये 
बहरा बने न मान ..
माया ठगिनी जायेगी , 
झोली रीती जान ... 
प्रीत करे बिसराइये 
कडवी खट्टी बैन , 
जो मधवा बिस्वास का, 
चखे सो जाने चैन ...

Saturday, May 19, 2012

धूसर

मुझे अँधेरे पुकारते हैं , 
झींगुर की आवाजें बनकर 
और रौशनी मद्धम मद्धम 
कहती है रुक जाओ पल भर ...
आखिर तो मिलना ही है , 
कालिख और आग नहीं दुश्वार 
दोजख कुछ दूर नही मुझसे , 
कहते हैं अँधेरे हर बार 
मगर रौशनी मुस्काती है 
बढ़ चल दूर बहुत है छोर
वो नीला दरिया पानी का  
बर्फीले सफ़ेद की ओर  .. 
इसलिए बढ़ता जाता हूँ 
धूसर एक प्रेत जैसे , 
अभी अंधेरों धीर धरो ...
ले जाना जब सांस रुके ..