Sunday, October 31, 2010

मै इंतज़ार करूँगा तुम्हारे आने का

मेरे खतो के कफ़न काग़ज़ी लिफाफो से ,
दफ़न से हर्फ़ ज़रा अब महक रहे होगे,
अब उनकी खूबसूरती उतर गयी होगी ,
वक़्त के साथ मायने बदल गए होगे |

मगर हैरत मेरे पते पे लौटते क्यूँ नही ,
तुम्हे छूते ही चिपक जाते हैं सायो की तरह,
तुम्हे शिकन नही होती सडन से क्यूँ उनकी ,
कही जुकाम तो नही , नही आने की वजह |

खतो को फातेहा पढता हूँ आज मै अपने ,
उन्हें सुपुर्द किये जा रहा हूँ वो सपने ,
महक जिनकी सड़ांध कम कर दे ,
और शायद जुकाम भी हर दे |

मुझे तो शौक था पत्थर से दिल लगाने का ,
और हुनर देखना दाँतो से नख चबाने का,
ज़रा जल्दी करो होता है वक़्त जाने का ,
हश्र भी देखना है तेरे उस बहाने का |

मै इंतज़ार करूँगा तुम्हारे आने का ||

Monday, October 25, 2010

-untitled - you do it for me

सायो के शिकारी आये , पहचान छुपाई जाए
और तुम से बिना बताये , कोई रात बुलाई जाए |

अब भी वो फूलो जैसे , बस मुरझाये जातें हैं ,
आये तो बढ़ कर कोई , बारात सजाई जाए |

हाथो में किताबें जैसे बेवा है कोई बचपन की ,
कोई रंग अगर मिल जाए , बेबाक सुनाई जाए |

सुरमे के हदो से झांके , पर्वत की नोक पे अटकी,
जो बात कोई मक्खी सी ,एक दम में उड़ाई जाए |

तुमने भी लिए होगे कुछ ,किस्से मेरी ख़ामोशी से ,
चाहो तो पुरानी बिखरी बुनियाद बनाई जाए |

Tuesday, October 19, 2010

अपस्मर

ऐ पथिक ठहरो , ये अंतिम द्वार है और ,
मै तुम्हारी राह में रोड़ा बना हूँ ,
चल रहे थे तुम मेरे ही साथ अब तक ,
आज लेकिन मै तेरे आगे खड़ा हूँ |

आदि - अहं संतान , बोध का प्याला हूँ मै ,
ज्ञान वृक्ष की श्वास बुझाने वाला हूँ मै |
मुझमे है हर व्याधि , बनाऊ तुम्हे तत्व का आदी,
धन-बल कारक मेरे , दास और आवास मनुज की जाति |

आज विरक्ति में आनंद तुम्हे लेना है ,
विष धर कंठ तुम्हे अब गंगाजल देना है |
इच्छाओं के नागो से श्रृंगारित व सज्जित होकर,
शिव होने को आज तुम्हे तांडव करना होगा मुझपर |

मुझे आज स्वीकार , मिलेगा शिव-पग-रज उपहार ,
बनोगे तुम शिव के आधार , जलाओगे सारा संसार |
भस्म रमाओगे या भस्म करोगे दुनिया ,
आधे अब तुम कैसे सहन करोगे दुनिया |

मै प्रतीक रूप में हूँ उस मोक्ष द्वार का द्वारपाल ,
जा तुझे आज्ञा है , पहले तू मुझे तो ले सम्हाल ,
नटराज के तांडव के साथ अमर हूँ ,
नहीं मूढ़ जानेंगे मुझे , पुरुष अपस्मर हूँ ||