जो जमाने के अंधेरो को मिटाने निकले ,
उनको हाथों में आबलो के खजाने निकले |
कोई पत्थर तो उठाओ , तमाशबीनो तुम ,
बातो बातों से मेरे महल ढहाने निकले |
दिन तो वो भी गया के , चल दिए उठ कर चुप से ,
और किसी रोज़ ना जाने के बहाने निकले |
आह आई तो भी तेरी अदाएं लेती हुई ,
चीख उट्ठी तो लगा तुमको तराने निकले |
वो बला थी गुजर गयी , गुजर गए हम भी ,
बड़े कमज़र्फ हुए थे ये फ़साने निकले |
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