Friday, December 17, 2010

Chalte Bol

जो जमाने के अंधेरो को मिटाने निकले ,

उनको हाथों में आबलो के खजाने निकले |


कोई पत्थर तो उठाओ , तमाशबीनो तुम ,

बातो बातों से मेरे महल ढहाने निकले |


दिन तो वो भी गया के , चल दिए उठ कर चुप से ,

और किसी रोज़ ना जाने के बहाने निकले |


आह आई तो भी तेरी अदाएं लेती हुई ,

चीख उट्ठी तो लगा तुमको तराने निकले |


वो बला थी गुजर गयी , गुजर गए हम भी ,

बड़े कमज़र्फ हुए थे ये फ़साने निकले |


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