Tuesday, October 4, 2011

माँ


जब आंते भूख से कुलबुलाती है 
चिपक जाती है भीच लेने तब तेरा आँचल
फैल कर बाहें पेट के इर्द गिर्द 
बस हवा रह जाती है , आवाजें करती अन्दर बाहर 
माँ तब तू याद आती है 

जब थाली परसता है बैरा , कपडे से पोंछ कर 
लेकिन फिर भी एक तेल की तह रह जाती है 
बेस्वाद हो जाती है तब , एक एक निवाले की भूख 
तीखा खा कर तब , आँखे तेरी ममता याद कर 
नम हो जाती है , माँ तब तू याद आती है 

याद आती है , निश्छल तेरी सेवा दुलार , प्यार 
और गलतियाँ मेरी हज़ार , बार बार लगातार
जब तेरा प्यार खोजते हुए , मुझसे कोई लड़की टकराती है 
और मनचाहे ख़्वाब देखते , लेकिन तब तू बिसर जाती है 
एक दिन फिर जब वो भी अकेला छोड़ जाती है 
माँ तब तू याद आती है 

जब खाली होता है मन , और चार दीवारी 
और होती है लाचारी , दूरी , बीमारी 
तब शैशव की वो ढाल , और वो जुडी गर्भनाल पाने 
आत्मा मचल जाती है ,
फैला कर बाहें पेट के इर्द गिर्द , सिकोड़ कर लम्बी टांगें 
तन से वो स्थिति अकस्मात् दोहराती है 
माँ जब तू याद आती है ....

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