Wednesday, November 23, 2011

नैन सुने

कोई मेरे लफ्ज़ चुरा ले 
बस आँखों से बातें कर लूँ 
रुई के फाहे भर कानो में 
सारे रंग तुम्हारे चख लूँ ..
इधर उधर फैला है जितना  
इतना निश्छल इतना निर्मल 
बहते झरने से चेहरों के  
बाँध अंजुली अमृत हर लूँ .. 
नापी तौली , सजी नहीं 
जो किसी तार से बुनी नहीं 
वो बैन अबोली समझो तो 
मै सागर गागर में भर लूँ ...
कल पर्दा ये गिरता होगा 
बड़ा फेर है वक़्त वक़्त में
नाट्यमंच फैला है विस्तृत
पल में जी लूँ ,मन में रख लूँ .. 

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