Monday, December 5, 2011

सवाली


हक से मिले जो फांक 
न हक से मिली वो ख़ाक 
कपडे बदलते रोज़ , 
जो बदले न उसमे झाँक ...


हर रोज़ जलना है मुझे 
मानिंद-ऐ-आफ़ताब ..
पल पल कहे पुकार के 
पल पल का रख हिसाब ...

जुम्बिश से ही बता दियो 
समझूंगा साफ़ साफ़ ..
कैसी तेरी जुबान है, 
के लिहाफ पर लिहाफ 

न इल्म का सुकून मुझे 
न कुफ्र की फ़िराक
मुझको सनम की चाह है 
मोमिन पढो किताब ...

मै तो तेरा मुजस्समा 
तू मेरा संगकार ..
जो मै ख़राब तो तेरी 
कारीगरी ख़राब ..

मौजूद अब भी चार सु 
सोये है बेहिजाब ... 
अपने सवाल मै गिनू 
दीजो मुझे जवाब ...



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