Monday, January 3, 2011

मंथन

बहे जाओ अगर धारो में तुम इस ज़िन्दगी की तो
मेरी मानो किनारो पे सम्हलना भूल जाओगे
सदा ये याद रखना के तुम इन्सां हो मेरे प्यारो ,चलाओ पैर नदिया में नही तो डूब जाओगे

पैठ गहराइयो में सीपियाँ पायी तो क्या पाया ,
अगर मंथन करो तो और कितने रत्न पाओगे
हलाहल से अगर घबरा के कोशिश छोड़ बैठे तुम ,मेरे प्यारे तो अपने यत्न सारे व्यर्थ पाओगे

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