२ अगस्त २०११ , ००:४४
"जुम्बिश , हरकत , आवाज़ , नज़र सब छीन गयी , कोशिश मेरी
पौना घंटा यूँ गुज़र गया मन की मन में, बस बात रही |
एक यादगार तोहफे के लिए
तस्वीर बनानी थी तेरी
पर कांप रहे थे हाथ मेरे
वो दे न सका अच्छे के लिए |
कुछ लफ्ज़ गूंथने चाहे थे तुक में वो बात नहीं बैठी
और शब्द हमारे बर्फ हुए कोशिश तो हुई , फूटे ही नहीं |
वो चार निवाले हाथो से
दो लफ्ज़ो से भारी निकले
इतनी खुशियाँ न सह पाए
नम गाल लिए रुखसत ले ली |
अब दाग लिए फिरते हैं सालन जो कमीज़ पे सूख गया
अब उसकी एक कहानी है कुछ दाग सही अच्छे के लिए | "
kuch dag achhe hote hai praval bhai
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