Saturday, May 19, 2012

धूसर

मुझे अँधेरे पुकारते हैं , 
झींगुर की आवाजें बनकर 
और रौशनी मद्धम मद्धम 
कहती है रुक जाओ पल भर ...
आखिर तो मिलना ही है , 
कालिख और आग नहीं दुश्वार 
दोजख कुछ दूर नही मुझसे , 
कहते हैं अँधेरे हर बार 
मगर रौशनी मुस्काती है 
बढ़ चल दूर बहुत है छोर
वो नीला दरिया पानी का  
बर्फीले सफ़ेद की ओर  .. 
इसलिए बढ़ता जाता हूँ 
धूसर एक प्रेत जैसे , 
अभी अंधेरों धीर धरो ...
ले जाना जब सांस रुके ..

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