Tuesday, June 5, 2012

प्रेम पतन

एक सफ़ेद कबूतर था
जो दूजों से इत्तर था
इक पर उसका काला था
और वो हिम्मत वाला था
प्यार हुआ एक कोयल से
बैठा एकतरफा दिल दे
गुटर गुटर गूं करता था
कुहू कुहू पे मरता था
इक दिन उसने इजहार किया
कोयल तुमसे ही प्यार किया
तब मीठे शब्द कही कोयल
मै काली और तुम धवल धवल ..
अब ऐसी जग की रीत नहीं
और मुझको तुमसे प्रीत नहीं
तब दिल-ऐ-कबूतर टूट गया
और वीराने को कूच किया ...
अपने ही में रहता था अब
मुह से कुछ न कहता था अब
पर धोने की अब की न कसर
और रंग हुआ उसका धूसर
इक दिन इक शैतानी साया
चिमनी बन कर आगे आया
उड़ती कालिख देखी उसने
कोयल का कहना याद आया
तब बढ़ा चला वो उसी ओर
घुटता दम और धुंए का जोर
चिमनी ने उसके होश लिए
और रंग हुआ उसका काजल
एक बार देख अपनी हालत
बोला हंस के आओ कोयल
अब मै तुम जैसे काला हूँ
लेकिन अब मरने वाला हूँ
कालिख में जान समाएगी
ये आग मुझे खा जायेगी
और गिरता रहा ठहाके ले
टकराता सा दीवारों से आँखे थी लाल अंगारों सी
निचे देहका सा नरक उसे
खा गया वहीँ बाहों में ले
खा गया वहीँ बाहों में ले ...
इसका नसीब कुछ इत्तर था
कोयल से मिलने के पहले
वो एक सफ़ेद कबूतर था
वो एक सफ़ेद कबूतर था

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