सायो के शिकारी आये , पहचान छुपाई जाए
और तुम से बिना बताये , कोई रात बुलाई जाए |
अब भी वो फूलो जैसे , बस मुरझाये जातें हैं ,
आये तो बढ़ कर कोई , बारात सजाई जाए |
हाथो में किताबें जैसे बेवा है कोई बचपन की ,
कोई रंग अगर मिल जाए , बेबाक सुनाई जाए |
सुरमे के हदो से झांके , पर्वत की नोक पे अटकी,
जो बात कोई मक्खी सी ,एक दम में उड़ाई जाए |
तुमने भी लिए होगे कुछ ,किस्से मेरी ख़ामोशी से ,
चाहो तो पुरानी बिखरी बुनियाद बनाई जाए |
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