Tuesday, October 19, 2010

अपस्मर

ऐ पथिक ठहरो , ये अंतिम द्वार है और ,
मै तुम्हारी राह में रोड़ा बना हूँ ,
चल रहे थे तुम मेरे ही साथ अब तक ,
आज लेकिन मै तेरे आगे खड़ा हूँ |

आदि - अहं संतान , बोध का प्याला हूँ मै ,
ज्ञान वृक्ष की श्वास बुझाने वाला हूँ मै |
मुझमे है हर व्याधि , बनाऊ तुम्हे तत्व का आदी,
धन-बल कारक मेरे , दास और आवास मनुज की जाति |

आज विरक्ति में आनंद तुम्हे लेना है ,
विष धर कंठ तुम्हे अब गंगाजल देना है |
इच्छाओं के नागो से श्रृंगारित व सज्जित होकर,
शिव होने को आज तुम्हे तांडव करना होगा मुझपर |

मुझे आज स्वीकार , मिलेगा शिव-पग-रज उपहार ,
बनोगे तुम शिव के आधार , जलाओगे सारा संसार |
भस्म रमाओगे या भस्म करोगे दुनिया ,
आधे अब तुम कैसे सहन करोगे दुनिया |

मै प्रतीक रूप में हूँ उस मोक्ष द्वार का द्वारपाल ,
जा तुझे आज्ञा है , पहले तू मुझे तो ले सम्हाल ,
नटराज के तांडव के साथ अमर हूँ ,
नहीं मूढ़ जानेंगे मुझे , पुरुष अपस्मर हूँ ||

2 comments:

  1. ITS NICE PRAVAL........keep writing

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  2. great work!! I liked the opening lines best.. unique

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