Sunday, December 19, 2010

आसरे

कतरा कतरा ये ज़िन्दगी जी है ,
प्याली प्याली उधार की पी है
सियाह पैराहन में बैठी है ,
एक बेवा सी चांदनी भी है

जाल में आये तो कैसे आये ,
यूँ मछेरो की कोशिशे भी है
लौट आये कोई सुबह शायद ,
तलाश उसकी रौशनी की है

तुम को बोले कोई सदी गुजरी ,
बात सोने की पोटली सी है
आज खोलो ज़रा गिरह अपनी ,
बात पिछले उधार ही की है

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