Thursday, September 22, 2011

अगड़म ढोंग धतूरा बगड़म


अगर सभी को मिलता जी भर प्यार तो बोलो क्या होता 
अगर चाँद के होते टुकड़े चार तो बोलो क्या होता 
अगर मलंगो का होता घर बार तो बोलो क्या होता 
अगर कायदे से चलता संसार तो बोलो क्या होता 
अगर खयाली पकता खाना , रोज़ तोड़ते बोटी 
अंधे होते लोग अगर तो पहने कौन लंगोटी 
सोचो ठाकुर का शाल अगर कुरते से ही स्टिच होता 
और अगर फूल टकराते न फिल्मो में बच्चा होता ??
बहरी होती दुनिया सारी , और कोई शोर न होता 
पर माँ न कहती लोरी तो क्या सपना अच्छा होता 
(काश) खद्दर , टोपी , लाल बत्ती में होता पागल राजा 
टका सेर ही होती डीजल , उतने का ही माजा
अगर तुम्हारे सर पे खरपतवार न उगती होती 
मेरी कविता चिड़िया उस पे दाना चुगती सोती 
अगड़म ढोंग धतूरा बगड़म पूरा पंडा जो बकता
हर छिद्र बंद न करते तो भेजे का चूरा रिसता?
अगर समझ में आती उसकी बात तो बोलो क्या होता?
अगर कायदे से चलता संसार तो बोलो क्या होता?

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