Friday, April 27, 2012

वादा


अपने मन में ठानी है तो अपने मन की गाऊंगा मै 
तुम्हे सुनहरे कल के झूठे सपने नहीं दिखाऊंगा मै

सूनी सूनी होती है वो सन्नाटो से सराबोर सी 
पथरीली है राहें सच्ची , बढे चलूँगा पैर जमाए 
धुन लागी है जबसे तेरी, सुनूँ नहीं जो लोग सुनाये 
सतही चिकनी बातो की तब क्या मजाल जो आड़े आये 
पग पग बिखरे कांटो पे भी फूल गुलाब सजाऊंगा मै ... 

अपने मन में ठानी है तो अपने मन की गाऊंगा मै 
तुम्हे सुनहरे कल के झूठे सपने नहीं दिखाऊंगा मै

फिर कहते हो गुस्सा करते हो तुम दिन दिन मुझपे यूँ ही 
प्यार किया है जब तुमसे तो, थोड़ी डांट-डपट भी होगी 
थोडा कहना जब बेहतर हो , मै आँखों से बात करूँगा 
कडवे शब्द कहूँगा तुमसे , सुई लगाते नहीं डरूंगा
जब गुस्सा मुझसे हो जाओ ये बाहें फैलाऊंगा मै ...

अपने मन में ठानी है तो अपने मन की गाऊंगा मै 
तुम्हे सुनहरे कल के झूठे सपने नहीं दिखाऊंगा मै

एक सयाने ने लिखा है , आग का दरिया डूब के जाना 
मै तो उतरा हूँ इसमें , तुम भी आओ ये शर्त नहीं है 
साँसों का जब तक बंधन है , लेकिन मेरी आस लगी है 
जो भी रिश्ता हो जैसे हो, वादा यही निभाऊंगा मै 
तुम्हे सुनहरे कल के झूठे सपने नहीं दिखाऊंगा मै ....

No comments:

Post a Comment