Monday, April 18, 2011

निशि-अनुबंध

कल का स्नेहनुबंध याद है , मंद मंद आनंद याद है
निशिगंधा के रूप लिए बातो की मदिर सुगंध याद है
निर्बाधित आलाप भ्रमर से , अनुगुंजित ज्यू नाम शिखर से
अवगुंठित , अनुराग लिए , पल जो छीने थे किसी प्रहर से
तंद्र तंद्र नयनो में बैठा अर्ध-सुप्त उन्माद याद  है
हे प्रिये तुम्हे कल रात याद है ?

निशि - वेला में विघ्न हुआ जब रश्मि विहीन तुणीर किया
रवि ने जब सप्त-तुरंग चढ़े , सिन्दूरी अम्बर-चीर किया
तब पथ प्रशस्त कर निकल गए , संध्या आश्वत हृदय लेकर
चुप चाप सजीली नार चले जब पग बोले छम रुनझुन कर
कर छोड़े जब दिनकर आये
क्या उस कर का निर्वाह याद है ?
हे प्रिये तुम्हे कल रात याद है ?

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