Saturday, April 23, 2011

शब्द-नृत्य

बाँधने दो आज बंधन
विकल मन को
मुंड पे लेपो धधकते
आज शीतल शुभ्र चन्दन 
सोख लेने दो सकल
हर रश्मि रंजित
श्याम तन को
वाष्प करने दो मुझे
हर गंध , छाया , नाद , घर्षण
ढूंढने दो आज वो निर्वात
जिसमे प्राण वायु मौन धर ले
तब मसि पीकर , मदोन्मत्त
लेखनी भी नृत्य कर ले
शब्द वन में ,
पर्ण , शाखे , जड़ , जटाएं
अंग सारे प्रेयसी के रूप भर ले
और झूमे तक धिना धिन
तुनक तुन तुन
प्रेम धुन में

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