Wednesday, March 30, 2011

बौराकवि

एक छोटे बच्चे को ताने जब लोग सुनाने लगते हैं
ठोकर खाते रोते पिटते , रिश्ते बेमाने लगते है
तब आँखो के निचे काले घेरे से छाने लगते हैं
एक अनदेखी आशंका के बादल मंडराने लगते हैं |


जब कोई ड्योढ़ी के पत्थर पे बैठ सोचता रहता है
चुपके चुपके सिसकी सिसकी आहें ले सब कुछ सहता है
दफनाये आँगन में सड़ते मुर्दे सपनो से डरता है
तब काली काली स्याही से वो पन्ने काले करता है |


तुक में , लय में , सुर सरिता में , संशय में खोता जाता है
अपने दिल में कुण्डी देकर दीवारे गढ़ता जाता है
भावो की बाढ़ तरंगो से जब सब गारा बह जाता है
वह एक कवि का भेस लिए , पागल ठहराया जाता है  |

Saturday, March 26, 2011

चले जाओ



मुझे तुम भूल जाओ और मुझको याद न आओ
ये दरवाजा खुला है अब जहाँ चाहो चले जाओ
गेसुओ की ये जंजीरे अदाओं के ये बहलावे
सहेजो ये तरीके , ये सितम औरो पे बरपाओ
मुजस्सिम है खुदाई हर कली हर फूल में मौजूद
ज़रा चश्मे उतारो , दुसरो पे गौर फरमाओ
न बोलो तुम न बोले हम ये खामोशी मुबारक हो
सुनो न तुम मेरी बातें न मेरे लफ्ज़ दोहराओ
ज़ेहन की बात है , मैं हूँ मेरी बातो के साए हैं
जुबां में फर्क है अपने न उलझो और न उलझाओ
मुझे तुम भूल जाओ और मुझको याद न आओ

Tuesday, March 15, 2011

कांचघर


कांच की बोतलों के बाशिंदे
आप बोले , नहीं कभी सुनते
न उनका दोष न गुनाह इसका
कान देखा है कभी बोतल का
मुट्ठियों से कतई मजबूत नहीं
ज़रा कोशिश करो बांधो तो सही
ये भी एक रोज़ चटख जाएगा
फूट जायेगा छिटक जाएगा
चमचमाती बिखर के हीरों सी
चुभन की दूब नमी देखेगी
भंवर गालों में उभर आयेंगे
मर्सिया दर्द का सुनायेंगे
सुरों को शोर के जामे देकर
बढे कदम जरा पीछे लेकर
तब खुली सांस से न घबराओ
जहाँ तक राह है चले आओ |

Sunday, March 13, 2011


ये शुष्क रुष्क तरु आशा की छाती पे जड़े जमाये है

आश्रय ले कर इसका जीवन ने कितने रंग दिखाए हैं


जब दस्तक देती है वसंत , तब खुल जाते है काष्ठ कंठ

कुछ पंच्छी रहने आते हैं ,कोटर तब गीत सुनाते है


हो चूका ठूंठ , बंजर बंजर , जीवन मधु से भर जाता है

यूँ विस्मृत स्पर्श इसे प्रेयसी अमरबेल का आता है


छालो से तब अनवरत अश्रु इस शब्द वृक्ष के बहते हैं,

तन पे उभरी रेखाओं की तब वह कवितायें कहते हैं ||




"कलपी कलपी काली काली

सगरी रैन जलाए नैन

चखी पुरानी कडवी खट्टी

बिसरी याद कराये बैन

पलकन पनघट सूखे छाए

प्यासे प्यासे पोर

कागे पंख उठाये नभ को

मचा रहे हैं शोर"