
कांच की बोतलों के बाशिंदे 
आप बोले , नहीं कभी सुनते 
न उनका दोष न गुनाह इसका 
कान देखा है कभी बोतल का  
मुट्ठियों से कतई मजबूत नहीं 
ज़रा कोशिश करो बांधो तो सही  
ये भी एक रोज़ चटख जाएगा 
फूट जायेगा छिटक जाएगा 
चमचमाती बिखर के हीरों सी 
चुभन की दूब नमी देखेगी
भंवर गालों में उभर आयेंगे 
मर्सिया दर्द का सुनायेंगे 
सुरों को शोर के जामे देकर 
बढे कदम जरा पीछे लेकर 
तब खुली सांस से न घबराओ   
जहाँ तक राह है चले आओ  |
 
 
No comments:
Post a Comment