Sunday, March 13, 2011



"कलपी कलपी काली काली

सगरी रैन जलाए नैन

चखी पुरानी कडवी खट्टी

बिसरी याद कराये बैन

पलकन पनघट सूखे छाए

प्यासे प्यासे पोर

कागे पंख उठाये नभ को

मचा रहे हैं शोर"

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