Saturday, March 26, 2011

चले जाओ



मुझे तुम भूल जाओ और मुझको याद न आओ
ये दरवाजा खुला है अब जहाँ चाहो चले जाओ
गेसुओ की ये जंजीरे अदाओं के ये बहलावे
सहेजो ये तरीके , ये सितम औरो पे बरपाओ
मुजस्सिम है खुदाई हर कली हर फूल में मौजूद
ज़रा चश्मे उतारो , दुसरो पे गौर फरमाओ
न बोलो तुम न बोले हम ये खामोशी मुबारक हो
सुनो न तुम मेरी बातें न मेरे लफ्ज़ दोहराओ
ज़ेहन की बात है , मैं हूँ मेरी बातो के साए हैं
जुबां में फर्क है अपने न उलझो और न उलझाओ
मुझे तुम भूल जाओ और मुझको याद न आओ

1 comment: