ये शुष्क रुष्क तरु आशा की छाती पे जड़े जमाये है
आश्रय ले कर इसका जीवन ने कितने रंग दिखाए हैं
जब दस्तक देती है वसंत , तब खुल जाते है काष्ठ कंठ
कुछ पंच्छी रहने आते हैं ,कोटर तब गीत सुनाते है
हो चूका ठूंठ , बंजर बंजर , जीवन मधु से भर जाता है
यूँ विस्मृत स्पर्श इसे प्रेयसी अमरबेल का आता है
छालो से तब अनवरत अश्रु इस शब्द वृक्ष के बहते हैं,
तन पे उभरी रेखाओं की तब वह कवितायें कहते हैं ||
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