Tuesday, August 23, 2011

फुर्सत


मैंने ख्वाब सुहाने देखे
दिन दोपहरी खुली पलक से
आस पास की सारी चीज़े
ओझल ओझल थी आंखो से
बेसुध देख रहे थे लेटे
दूर कोई आवाज़ नहीं थी
किसी फिक्र से सहमी कुम्हलाई
खुशियाँ भी पास नहीं थी

फुर्सत के ऐसे लम्हो में
तिनके तिनके कितने जोड़े
टूटे जब जब बोझिल होकर
कितने ख्वाब अधूरे छोड़े
आज उन्हें पूरे करने
जो ख्वाब अधूरे बचे हुए हैं
दो कांटो के बीच में जाने
कितने लम्हे फंसे हुए हैं

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