Tuesday, August 23, 2011

मुझे खेद है


मुझे खेद है , छद्म नाम पे स्वतंत्रता के 
लूट रहे कई लुटेरे हम को मिलकर...
मुझे खेद है,  यहाँ गडरिये हांक रहे हैं 
भाषा जात-पात की लाठी हाथो लेकर...
चितकबरे ,काले , सुफेद,  रंगीले भेड़
सबकी घास पे कोटे का एहसान जुड़ा है ...
मुझे खेद है , चरवाहों की खालो में
भूखा चतुरा एक भेड़िया घुसा हुआ है ...
घास बाँटने में इनका अंदाज निराला 
रंगों से है मापा किसको बड़ा निवाला 
जमा किये जाता है चारा स्विस खातो में 
इतनी घास कहाँ से पचे तेरी आंतो में ?
भूख हमारी , धार कर रही है इसके नख दन्त 
अपनी भूख से ये ही भेड़िया तब तक भूप महंत ...
मुझे खेद है , आदिम भूख सवाल बनी है ...
और खेद है , मेरे पास जवाब नहीं है 

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