Tuesday, August 23, 2011

Buried Guilt


तोड़ फोड़ और धमाचौकड़ी
उधम मचाता घर चौबारे
बचपन में इतना नटखट था
मेरे पीछे पड़ी थी दुनिया
हाथ छड़ी ले खड़ी थी दुनिया
घर गलियोँ में मै वांटेड था
बचपन में इतना नटखट था
गर्मी के दिन एक पड़े थे
अम्बुआ डारी आँखे मीचे
चिहु चिहु से आँख खुली तो
देखि चिड़िया एक टहनी पे
उत्पाती थे खुरापात में
एक गुलेल निकाली घर से
एक काले कंचे को भर के
उसपे दिया चलाया मैंने 
उस पल को चित पड़ी जमीन पे
बहुत नाज़ आया तब खुद पे
अर्जुन के गांडीव के जैसे
गर्व हुआ अपनी गुलेल पे
लेकिन देखी पर फैलाए
औंधी पड़ी , आकाश की रानी
तब मुझको याद आई जाने
क्यूँ गौतम की वही कहानी
बहुत बार धिक्कारा खुद को
क्यो गुलेल से मारा तुझको ?
तेरा भी घर बार तो होगा
छोटा एक संसार तो होगा
तेरे बच्चे देख रहे होगे
दाने को बाट तुम्हारी
मैंने अपनी खुरापात में
मटियामेट करी फुलवारी
उस चिड़िया को दफनाया फिर
मैंने अपने बागीचे में
उसको दफना कर शायद
मेरा वो बचपन बीत गया
जान नहीं पाया मै अब तक
हार गया या जीत गया

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