तोड़ फोड़ और धमाचौकड़ी
उधम मचाता घर चौबारे
बचपन में इतना नटखट था
मेरे पीछे पड़ी थी दुनिया
हाथ छड़ी ले खड़ी थी दुनिया
घर गलियोँ में मै वांटेड था
बचपन में इतना नटखट था
गर्मी के दिन एक पड़े थे
चिहु चिहु से आँख खुली तो
देखि चिड़िया एक टहनी पे
उत्पाती थे खुरापात में
एक गुलेल निकाली घर से
एक काले कंचे को भर के
उसपे दिया चलाया मैंने
उस पल को चित पड़ी जमीन पे
बहुत नाज़ आया तब खुद पे
अर्जुन के गांडीव के जैसे
गर्व हुआ अपनी गुलेल पे
लेकिन देखी पर फैलाए
औंधी पड़ी , आकाश की रानी
तब मुझको याद आई जाने
क्यूँ गौतम की वही कहानी
बहुत बार धिक्कारा खुद को
क्यो गुलेल से मारा तुझको ?
तेरा भी घर बार तो होगा
छोटा एक संसार तो होगा
तेरे बच्चे देख रहे होगे
दाने को बाट तुम्हारी
मैंने अपनी खुरापात में
मटियामेट करी फुलवारी
उस चिड़िया को दफनाया फिर
मैंने अपने बागीचे में
उसको दफना कर शायद
मेरा वो बचपन बीत गया
जान नहीं पाया मै अब तक
हार गया या जीत गया
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