Tuesday, August 23, 2011

दीप-राग


एक रात ऐसी भी गुजरी
आंखो से थी नींदे गुम
आधी आधी थी परछाई
जलता एक दिया गुमसुम
धू धू कर के उठती कालिख
सायो की प्यास बुझाती थी
और लौ पगली बिरहन जैसे
रोती हंसती बलखाती थी
झोन्को में बहती उमस ने
लौ को मजबूर किया होगा
और सीली सीली बाती ने
वो मीठा दर्द जिया होगा
सुलगी बाती के कुछ अरमान
बाकी होगे आधे आधे
जो प्याले से पीती होगी
उन बिखरे लम्हो की यादे

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