Friday, July 24, 2009

कभी सुबह की

कभी सुबह की अंगडाई के जैसी मैंने तेरे चहरे पर देखी है ,
एक दबी सी चाहत जिसपे शायद मेरा नाम लिखा है |
तेरी हया की लाली जिसमे शाम घुली है ,
तेरे लटों के गुच्छे जिनमे चाँद छुपा है ...

उठा उठा कर मैंने अपनी दो पलकों पर ,
ख्वाब हजारों सजा रखे हैं ,
कुछ लम्हे जो बीत गए वो छुपा रखे हैं ,
और तुम्हे पाने के अरमाँ दबा रखे हैं |
अधकच्चे फल के जैसे इन ख़्वाबों का अंजाम कहाँ है |
कभी सुबह की अंगडाई के जैसी मैंने तेरे चहरे पर देखी है ,
एक दबी सी चाहत जिसपे शायद मेरा नाम लिखा है .......

अब दिल को एक मिला जुला सा डर है आगे क्या होगा ,
तुम बिछ्डोगे मुझसे तो जाने कब फिर मिलना होगा ,
कौन आगे जाने , तेरा मेरा रिश्ता कैसा होगा ,
वैसा ही पहले जैसा , या और सुर्ख गहरा होगा ,
उल्फत का इकरार मुझे तुमसे मेरे प्रियतम करना है |
कभी सुबह की अंगडाई के जैसी मैंने तेरे चहरे पर देखी है ,
एक दबी सी चाहत जिसपे शायद मेरा नाम लिखा है .......

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