Saturday, July 25, 2009

अब वो

अब वो औरों की ज़ुबां का भी असर देखते हैं,
बात आई है जो उन पर तो इधर देखते हैं |

मेरे मरने की दुआ मांगने वाले अक्सर,
अपने छज्जों पे क़यामत के भंवर देखते हैं |

ख्वार खस्ता मेरा घर देखने वाले देखे ,
गौर से देखने वाले तो जिगर देखते हैं |

अपने आँगन सजा नहीं सके जो दीवाने ,
मेरे कलाम के शादाब शजर देखते हैं |

मेरी कलम का लिखा , मेरे जेहन के गुंचे ,
मेरे अरमान , मेरे ग़म , लोग हुनर देखते हैं |

सुन के भी अनसुना करते थे हमारी जो कभी ,
वो अब वारिद मेरी बातों की लहर देखते हैं |

2 comments:

  1. i lykd it a looooot,such thoughts 2 pen down..i find it really tough...commendable praval....

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  2. mashaallah........
    mia likhte to bahut achchha ho, magae ek dard hamesha ubhar aata hai......

    khair khushi ho ya gham.....likhte rehna....

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